हथियार में लोह ज्यों लोह मध्य हथियार,
कहे कबीर त्यों देखिये ब्रह्म मध्य संसार ||
अर्थात जिस प्रकार हथियार में लोहा है और लोहा हथियार है , उसी प्रकार यह संसार भी उस परम ब्रह्म के मध्य है, उस अदृश्य शक्ति के अधीन है | इन पंक्तियों के स्मरण से मनो संपूर्ण चित्त तथा शरीर में विवेचना, विचार तथा असमंजस और कोई अधूरे प्रश्नों की लहर दौड़ उठती है | आधुनिक मानव, वैज्ञानिक तथा विवेकी मनुष्य में कई बार यह सामान्य प्रश्न उठा होगा - "क्या ईश्वर मिथ्या है या सत्य है ?"
प्रतिदिन बिना किसी संकेत सूर्योदय होता है और निश्चित समय पर सूर्यास्त होता है | संसार के प्रत्येक वास्तु में गुरुत्वाकर्षण क्यों होता है ? वैज्ञानिक अन्वेषण कदाचित इन प्रश्नों का शीघ्र ही उत्तर उपलब्ध करवा देंगे | परन्तु सबसे मूलभूत प्रश्न तो फिर भी यही होगा की इस सृष्टी की, इस आकाशगंगा की, करोड़ों सैर मंडलों की रचना किसने की ? यदि विज्ञान अपने पक्ष में कहता है की यह महा विस्फोट का प्रदर्शन है, तो यह यह महा विस्फोट किसने करवाया ? हमारे शरीर में अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं का आरम्भ तथा अनेक जैविक वस्तुओं का उचित मात्रा में संचय व परिवहन, या हमारे मस्तिष्क का संचालन किसके नियमानुसार होता है ?
इन सभी प्रमाणों से हमें एक हलके विश्वास की ज्योत दिखाई देती है कि कोई ऐसी शक्ति है, कोई संचालक है जो सभी कार्यविधियों का ध्यान रखता है | परन्तु हमने आज तक इस ईश्वर को देखा नहीं है, केवल माना और पूजा है | ऐसे ही समय पर कबीरदास जी की अमृतवाणी गूँजती है -
“मैं जानू हरि दूर है, हरि हृदय भरपूर,
मानुस ढुढंहै बाहिरा नियरै होकर दूर।
हगवां शायद वही एक खुली खिड़की है जब सारे द्वार बंद हों | उनका भय हों शायद हमारे मन को कुछ सीमा तक नियंत्रित रखता है | उनकी आस, उनमें विश्वास यदि एक निखरे हुए इंसान को उज्वल भविष्य के चक्षु प्रदान करते हैं, तो यह उनकी मिथ्या या सत्य से परे हैं | शायद प्रभु कि उपस्थिति या अनुपस्थिति में कोई अंतर ही नहीं है | वही निःस्वार्थ माँ की ममता, वही बच्चों की निर्मल संवेदनशीलता और वही पिता का कर्कश-मुलायम प्रेम, ऐश्वर्य के प्रतीक हैं |
कहे कबीर त्यों देखिये ब्रह्म मध्य संसार ||
अर्थात जिस प्रकार हथियार में लोहा है और लोहा हथियार है , उसी प्रकार यह संसार भी उस परम ब्रह्म के मध्य है, उस अदृश्य शक्ति के अधीन है | इन पंक्तियों के स्मरण से मनो संपूर्ण चित्त तथा शरीर में विवेचना, विचार तथा असमंजस और कोई अधूरे प्रश्नों की लहर दौड़ उठती है | आधुनिक मानव, वैज्ञानिक तथा विवेकी मनुष्य में कई बार यह सामान्य प्रश्न उठा होगा - "क्या ईश्वर मिथ्या है या सत्य है ?"
प्रतिदिन बिना किसी संकेत सूर्योदय होता है और निश्चित समय पर सूर्यास्त होता है | संसार के प्रत्येक वास्तु में गुरुत्वाकर्षण क्यों होता है ? वैज्ञानिक अन्वेषण कदाचित इन प्रश्नों का शीघ्र ही उत्तर उपलब्ध करवा देंगे | परन्तु सबसे मूलभूत प्रश्न तो फिर भी यही होगा की इस सृष्टी की, इस आकाशगंगा की, करोड़ों सैर मंडलों की रचना किसने की ? यदि विज्ञान अपने पक्ष में कहता है की यह महा विस्फोट का प्रदर्शन है, तो यह यह महा विस्फोट किसने करवाया ? हमारे शरीर में अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं का आरम्भ तथा अनेक जैविक वस्तुओं का उचित मात्रा में संचय व परिवहन, या हमारे मस्तिष्क का संचालन किसके नियमानुसार होता है ?
इन सभी प्रमाणों से हमें एक हलके विश्वास की ज्योत दिखाई देती है कि कोई ऐसी शक्ति है, कोई संचालक है जो सभी कार्यविधियों का ध्यान रखता है | परन्तु हमने आज तक इस ईश्वर को देखा नहीं है, केवल माना और पूजा है | ऐसे ही समय पर कबीरदास जी की अमृतवाणी गूँजती है -
“मैं जानू हरि दूर है, हरि हृदय भरपूर,
मानुस ढुढंहै बाहिरा नियरै होकर दूर।
हगवां शायद वही एक खुली खिड़की है जब सारे द्वार बंद हों | उनका भय हों शायद हमारे मन को कुछ सीमा तक नियंत्रित रखता है | उनकी आस, उनमें विश्वास यदि एक निखरे हुए इंसान को उज्वल भविष्य के चक्षु प्रदान करते हैं, तो यह उनकी मिथ्या या सत्य से परे हैं | शायद प्रभु कि उपस्थिति या अनुपस्थिति में कोई अंतर ही नहीं है | वही निःस्वार्थ माँ की ममता, वही बच्चों की निर्मल संवेदनशीलता और वही पिता का कर्कश-मुलायम प्रेम, ऐश्वर्य के प्रतीक हैं |
ध्रूवी गणात्रा
सरस्वती के एक आलय ने ली नवल अंगडाई
खिलखिलाती हुई सबके जीवन में,
विद्या की ज्योति जलाई |
जला अपने हाथों में,
ज्ञान का दीपक |
चली इठलाती सी बालिका जैसी |
ज्ञान का सागर हो
या खेल का मैदान,
सदैव कामयाबी के कदम चूमें,
मिला इसको नया आयाम |
आ पहुँची नवयौवन के देहलीज पर
मन में आशा और विश्वास लिए
कदम-कदम पर उजाला फैलाती
चली मदमाती कामयाबी की मशाल लिए |
कुशल गुरुओं का साथ पाके
सुलोनियंस का हाथ थामे
सवार होकर प्रगति के स्वर्ण रथ पर,
चली अपना स्वर्णिम वर्ष मानाने |
खिलखिलाती हुई सबके जीवन में,
विद्या की ज्योति जलाई |
जला अपने हाथों में,
ज्ञान का दीपक |
चली इठलाती सी बालिका जैसी |
ज्ञान का सागर हो
या खेल का मैदान,
सदैव कामयाबी के कदम चूमें,
मिला इसको नया आयाम |
आ पहुँची नवयौवन के देहलीज पर
मन में आशा और विश्वास लिए
कदम-कदम पर उजाला फैलाती
चली मदमाती कामयाबी की मशाल लिए |
कुशल गुरुओं का साथ पाके
सुलोनियंस का हाथ थामे
सवार होकर प्रगति के स्वर्ण रथ पर,
चली अपना स्वर्णिम वर्ष मानाने |
युवराज केडिया
ऐ मानव ऐ मानव
यह एक हृदय की खुली चिट्ठी है
न बन जा आज तू अंधकार में दानव
यह इस दिल की तुझसे विनती है |
ऐ मानव ऐ मानव
एक माँ ने तुझे जन्मा , एक बहन ने तुझे सुलाया
तो फिर आज क्यों तूने मुझे
बराबर न मानकर यों भुलाया ?
ऐ मानव ऐ मानव
अपनी प्रगति के नाम पर, पाने को यश
जिसने तुझे पाला, उसे अपने से छोटा मानकर
क्यों आज मुझी को बनाया विवश ?
ऐ मानव ऐ मानव
याद अब नहीं तुझे राखी का वह दिन
जब वादा किया था तूने, आंच न आने देगा मुझे
फिर आज तुझे अपनी कलाई क्यों सूनी न लगती राखी के बिन ?
ऐ मानव ऐ मानव
जिस कोख ने जन्म दिया था तुझको
आज उसका अपमान कर
क्यों दे रहा है पीड़ा मुझको ?
ऐ मानव ऐ मानव
न जाने कितनी बार तूने मुझे रोका
कहता था - तुम स्त्री हो, रहने दो
कैसे तूने मान लिया मुझे हवा का मामूली झोंका?
ऐ मानव ऐ मानव
मैं हर वह स्त्री हूँ,
माँ, नानी, बहन, सहेली
जिसकी अहमियत आज भूल गया है तू |
ऐ मानव ऐ मानव
मुझे तेरी छाया में नहीं छुपना
आगे बढ़कर उड़ान भरनी है
यों पल्लू के पीछे नहीं ढकना |
ऐ मानव ऐ मानव
माँ काली से कालिमा का सफर मैंने देखा है
क्योंकि तूने, सिर्फ तूने
मुझसे मेरा अस्तित्व चुराया है |
ऐ मानव ऐ मानव
रूप लिए द्रौपदी, सीता, गंगा का
बन सकती हूँ मैं चण्डालिनी
वाक़िफ़ तो तू इससे भी होगा |
ऐ मानव ऐ मानव
काश आज तू याद रखता
कि यदि संसार में मैं न होती
तो शायद तू जन्मा ही न होता |
ऐ मानव ऐ मानव
मैं अपने आप को बचा लूंगी
लेकिन तूने मेरी पहचान छीनी
आज मैं ही खुद से पूछने लगी - मैं कौन हूँ ?
यह एक हृदय की खुली चिट्ठी है
न बन जा आज तू अंधकार में दानव
यह इस दिल की तुझसे विनती है |
ऐ मानव ऐ मानव
एक माँ ने तुझे जन्मा , एक बहन ने तुझे सुलाया
तो फिर आज क्यों तूने मुझे
बराबर न मानकर यों भुलाया ?
ऐ मानव ऐ मानव
अपनी प्रगति के नाम पर, पाने को यश
जिसने तुझे पाला, उसे अपने से छोटा मानकर
क्यों आज मुझी को बनाया विवश ?
ऐ मानव ऐ मानव
याद अब नहीं तुझे राखी का वह दिन
जब वादा किया था तूने, आंच न आने देगा मुझे
फिर आज तुझे अपनी कलाई क्यों सूनी न लगती राखी के बिन ?
ऐ मानव ऐ मानव
जिस कोख ने जन्म दिया था तुझको
आज उसका अपमान कर
क्यों दे रहा है पीड़ा मुझको ?
ऐ मानव ऐ मानव
न जाने कितनी बार तूने मुझे रोका
कहता था - तुम स्त्री हो, रहने दो
कैसे तूने मान लिया मुझे हवा का मामूली झोंका?
ऐ मानव ऐ मानव
मैं हर वह स्त्री हूँ,
माँ, नानी, बहन, सहेली
जिसकी अहमियत आज भूल गया है तू |
ऐ मानव ऐ मानव
मुझे तेरी छाया में नहीं छुपना
आगे बढ़कर उड़ान भरनी है
यों पल्लू के पीछे नहीं ढकना |
ऐ मानव ऐ मानव
माँ काली से कालिमा का सफर मैंने देखा है
क्योंकि तूने, सिर्फ तूने
मुझसे मेरा अस्तित्व चुराया है |
ऐ मानव ऐ मानव
रूप लिए द्रौपदी, सीता, गंगा का
बन सकती हूँ मैं चण्डालिनी
वाक़िफ़ तो तू इससे भी होगा |
ऐ मानव ऐ मानव
काश आज तू याद रखता
कि यदि संसार में मैं न होती
तो शायद तू जन्मा ही न होता |
ऐ मानव ऐ मानव
मैं अपने आप को बचा लूंगी
लेकिन तूने मेरी पहचान छीनी
आज मैं ही खुद से पूछने लगी - मैं कौन हूँ ?
काव्या वेंकटेश
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा |
गुरु साक्षात पर ब्रह्मा, तस्मय श्री गुरु वे नमः ||
यह श्लोक सभी ने सुना होगा | एक गुरु बहुत बार अनजाने में अपने शिष्य के जीवन का मूलभूत भाग बन जाता है | इसलिए गुरु के लिए पूरे विश्व में सम्मान बना रहता है |
मेरे माता-पिता डॉक्टर हैं | वे दवाखाने जाने के आलावा मेडिकल और डेंटल कॉलेज भी जाकर पढ़ाया करते हैं | लोग मुझे हमेशा यह पूछते है की "क्या तुम भी डॉक्टर बनोगी?" यह किसीने नहीं पूछा की "क्या तुम अपने माता-पिता की तरह एक अध्यापक बनोगी?" मुझे खुद पता नहीं चला कि कब मैं सोचने लगी कि मुझे बड़े होकर पढ़ाना है | शायद मेरे माता-पिता का प्रभाव मुझपर पड़ा है |
शायद मुझे अपने अध्यापकों से प्रेरणा मिली है | यह शायद मेरे अंदर उस इच्छा की है कि मैं स्वयं प्राप्त किया गया ज्ञान पूरे विश्व के साथ बाटूँ | इस लक्ष्य की ओर मैंने कोई बड़ा कदम नहीं लिया है, हाँ, लेकिन अनेक छोटे-छोटे कदम आवश्य लिए है | आज भी कोई मुझे मौका दे तो मैं उन्हें कुछ-न-कुछ सीखने के लिए तैयार रहती हूँ | किसी छात्र के कुछ न समझने पर अगर वह मेरे पास आए तो मेरी खुशी की सीमा नहीं होती | मैं उसे वही बात बार-बार समझाती हूँ जब तक उसे अच्छी तरह समझ नहीं आ गया हो | मैं आसानी से समझनेवाले उदाहरणों का प्रयोग करती हूँ ताकि उसे बहतर समझे | कहते है कि शिष्य की तरह गुरु भी हमेशा ज्ञान की खोज में रहता है | इसलिए मैं अपने आस-पास के लोगों द्वारा दिए गए ज्ञान को हमेशा ध्यान में रखती हूँ और अवसर मिलने पर प्रासंगिक ज्ञान बाटती हूँ |
मुझे जब कभी मौका मिलता है मैं कक्षा में सभी के सामने बात करती हूँ ताकि जिस दिन मैं अध्यापिका बनूँ उस दिन मैं भीगी बिल्ली न बन जाऊ | कई बार मैं डर जाती हूँ और ऐसे मौकों को जाने देती हूँ लेकिन कुछ समय बाद ही निराशा से हाथ मलती हूँ | एक अध्यापिका को हर शिष्य, चाहे पढ़ाई में अच्छा हो या कमज़ोर, को जागरूक करना होता है | मैं अपने अध्यापकों के पढ़ने के तरीकों की तुलना करते हुए उनके गुणों को अपनाने का प्रयास करती हूँ | जब शिक्षक पढ़ाते है तब मैं ध्यान देते हुए अक्सर यह सोचती हूँ की अगर मुझे यह पाठ किसी और को पढ़ना हो तो मैं शुरुआत किस प्रकार करुँगी अगर हम देखे तो ऐसा कोई विषय नहीं है जिसे हमारे गुरु सीखा नहीं सकते हैं| कक्षा में मेरे दोस्तों के सपने गुरु के बिना पूरे नहीं हो सकते हैं | वह गुरु ही है जो हमें अपने पैरों पर खड़ा होने की प्रेरणा देता है | आज हम जीवन में जो भी हैं, वह केवल हमारे गुरुओं की कृपा है | अतः मैं विश्व भर के गुरुओं को प्रणाम करती हूँ |
गुरु साक्षात पर ब्रह्मा, तस्मय श्री गुरु वे नमः ||
यह श्लोक सभी ने सुना होगा | एक गुरु बहुत बार अनजाने में अपने शिष्य के जीवन का मूलभूत भाग बन जाता है | इसलिए गुरु के लिए पूरे विश्व में सम्मान बना रहता है |
मेरे माता-पिता डॉक्टर हैं | वे दवाखाने जाने के आलावा मेडिकल और डेंटल कॉलेज भी जाकर पढ़ाया करते हैं | लोग मुझे हमेशा यह पूछते है की "क्या तुम भी डॉक्टर बनोगी?" यह किसीने नहीं पूछा की "क्या तुम अपने माता-पिता की तरह एक अध्यापक बनोगी?" मुझे खुद पता नहीं चला कि कब मैं सोचने लगी कि मुझे बड़े होकर पढ़ाना है | शायद मेरे माता-पिता का प्रभाव मुझपर पड़ा है |
शायद मुझे अपने अध्यापकों से प्रेरणा मिली है | यह शायद मेरे अंदर उस इच्छा की है कि मैं स्वयं प्राप्त किया गया ज्ञान पूरे विश्व के साथ बाटूँ | इस लक्ष्य की ओर मैंने कोई बड़ा कदम नहीं लिया है, हाँ, लेकिन अनेक छोटे-छोटे कदम आवश्य लिए है | आज भी कोई मुझे मौका दे तो मैं उन्हें कुछ-न-कुछ सीखने के लिए तैयार रहती हूँ | किसी छात्र के कुछ न समझने पर अगर वह मेरे पास आए तो मेरी खुशी की सीमा नहीं होती | मैं उसे वही बात बार-बार समझाती हूँ जब तक उसे अच्छी तरह समझ नहीं आ गया हो | मैं आसानी से समझनेवाले उदाहरणों का प्रयोग करती हूँ ताकि उसे बहतर समझे | कहते है कि शिष्य की तरह गुरु भी हमेशा ज्ञान की खोज में रहता है | इसलिए मैं अपने आस-पास के लोगों द्वारा दिए गए ज्ञान को हमेशा ध्यान में रखती हूँ और अवसर मिलने पर प्रासंगिक ज्ञान बाटती हूँ |
मुझे जब कभी मौका मिलता है मैं कक्षा में सभी के सामने बात करती हूँ ताकि जिस दिन मैं अध्यापिका बनूँ उस दिन मैं भीगी बिल्ली न बन जाऊ | कई बार मैं डर जाती हूँ और ऐसे मौकों को जाने देती हूँ लेकिन कुछ समय बाद ही निराशा से हाथ मलती हूँ | एक अध्यापिका को हर शिष्य, चाहे पढ़ाई में अच्छा हो या कमज़ोर, को जागरूक करना होता है | मैं अपने अध्यापकों के पढ़ने के तरीकों की तुलना करते हुए उनके गुणों को अपनाने का प्रयास करती हूँ | जब शिक्षक पढ़ाते है तब मैं ध्यान देते हुए अक्सर यह सोचती हूँ की अगर मुझे यह पाठ किसी और को पढ़ना हो तो मैं शुरुआत किस प्रकार करुँगी अगर हम देखे तो ऐसा कोई विषय नहीं है जिसे हमारे गुरु सीखा नहीं सकते हैं| कक्षा में मेरे दोस्तों के सपने गुरु के बिना पूरे नहीं हो सकते हैं | वह गुरु ही है जो हमें अपने पैरों पर खड़ा होने की प्रेरणा देता है | आज हम जीवन में जो भी हैं, वह केवल हमारे गुरुओं की कृपा है | अतः मैं विश्व भर के गुरुओं को प्रणाम करती हूँ |
दुर्गा श्रीनिवासन
सूनी कोख में था अजेय सूर्य चमका
उसकी रश्मि से खिला था पुष्प हर्ष का
निराशा की कालिमा पर था भारी तेज उसका
जिससे भाप बन गया सरोवर अश्रुओं का
भाप के बादलों से थी समृद्ध वर्षा प्रत्याशित
उस सुवर्ण जनन से सारा संसार था प्रकाशित
यही प्राकृतिक संस्थानों का सौन्दर्य था
जिसने घोला भावनाओं का अनोखा मिश्रण था
अपनी ममता के पल्लू में बाँधकर
अपने आँचल की छाया में पालकर
यौवन के शिकार तक पहुँचाया था इसने
यही वह जननी थी, खूब हँसाया था इसने
हमारी किलकारियों में प्रसन्नता देखते थी
मार्ग के काँटे हटाकर सुमन बिछली थी
हमारे जीवन के घावों पर अपना स्नेह-लेप लगाती
शैशव को यौवन की आकृति वह देती
परन्तु करती है एक बात मुझे त्रस्त
क्यों होता गया यह जग मौकापरस्त
जिन आँखों ने देखा सफल संतान का सपना
उन्हीं आँखों को क्यों देखना पड़ा वृद्धाश्रम अपना
जो भरते है अपने शिशु के जीवन में रंग
वही युवा क्यों करता है उनकी मुस्कान भंग
अंतिम निमिष अकेले बिताए हैं उन्होंने
प्राथमिक क्षणों को संभव बनाया था जिन्होंने
यही प्रार्थना हैं मेरी आज सभी संतानों से
बाहर निकल इस असंवेदनशीलता के खंडहर से
माता तो जीवन की है बेशकीमती मणि
आजीवन हम सब रहेंगे उसके ऋणी
ऋण चुकाने का सामर्थ्य हममें नहीं
आपके अश्कों के योग्य हमारे कर नहीं
क्या आप अपना मुखचंद्र पुनः खिलाएँगी?
क्या माँ आप हमें क्षमा कर पाएँगी?
उसकी रश्मि से खिला था पुष्प हर्ष का
निराशा की कालिमा पर था भारी तेज उसका
जिससे भाप बन गया सरोवर अश्रुओं का
भाप के बादलों से थी समृद्ध वर्षा प्रत्याशित
उस सुवर्ण जनन से सारा संसार था प्रकाशित
यही प्राकृतिक संस्थानों का सौन्दर्य था
जिसने घोला भावनाओं का अनोखा मिश्रण था
अपनी ममता के पल्लू में बाँधकर
अपने आँचल की छाया में पालकर
यौवन के शिकार तक पहुँचाया था इसने
यही वह जननी थी, खूब हँसाया था इसने
हमारी किलकारियों में प्रसन्नता देखते थी
मार्ग के काँटे हटाकर सुमन बिछली थी
हमारे जीवन के घावों पर अपना स्नेह-लेप लगाती
शैशव को यौवन की आकृति वह देती
परन्तु करती है एक बात मुझे त्रस्त
क्यों होता गया यह जग मौकापरस्त
जिन आँखों ने देखा सफल संतान का सपना
उन्हीं आँखों को क्यों देखना पड़ा वृद्धाश्रम अपना
जो भरते है अपने शिशु के जीवन में रंग
वही युवा क्यों करता है उनकी मुस्कान भंग
अंतिम निमिष अकेले बिताए हैं उन्होंने
प्राथमिक क्षणों को संभव बनाया था जिन्होंने
यही प्रार्थना हैं मेरी आज सभी संतानों से
बाहर निकल इस असंवेदनशीलता के खंडहर से
माता तो जीवन की है बेशकीमती मणि
आजीवन हम सब रहेंगे उसके ऋणी
ऋण चुकाने का सामर्थ्य हममें नहीं
आपके अश्कों के योग्य हमारे कर नहीं
क्या आप अपना मुखचंद्र पुनः खिलाएँगी?
क्या माँ आप हमें क्षमा कर पाएँगी?
ध्रूवी गणात्रा
हमारा विशव विख्यात भारत देश समाज के सबसे प्रमुख देश में से एक माना जाता है | यह गर्व की बात है परन्तु मैं मानता हूँ कि पूरी तरह से हमें गर्वित नहीं महसूस करना चाहिए क्योंकि हमारे देश को विश्व के सबसे प्रमुख और उन्नत देश का स्थान मिलना चाहिए | हमारे पास तो ईश्वर की कृपा से हर तरह के पदार्थ, वस्तु व चीजे हैं; समझदार लोग है , धन है , सब कुछ है परन्तु एक ऐसी चीज भी है जिससे हमारे देश की अवनति हो रही है | इस चीज के कारण हम पिछड़ रहे हैं | वह चीज हैं लोगों का भ्रष्ट मन | मुझे आज भी याद हैं वह दिन जब मैं, मेरी बहन और मेरे पिताजी र.टी.ओ गए थे ताकि हम मेरी बहन के लिए लाइसेंस बनवा सकें | लम्बी लाइन पार करने के पश्चात् जब हम अंदर परीक्षा देने गए तब हमें एक सरकारी कर्मचारी मिले जो वह काम करते थे | उन्होंने मेरे पिताजी से कहा कि वे पाँच सौ रुपयों में बिना परीक्षा के लाइसेंस दिलवा देंगे | मेरे पिताजी ने उन्हें साफ़ इंकार कर दिया और मेरी बहन ने परीक्षा सफलता से पास करने के पश्चात् लइसेंस प्राप्त किया | मैं तब से सोचने लगा कि अगर लोग ऐसे लाइसेंस बेचेंगे तो जो लोग सड़क पर गाड़ियाँ चलाएँगे उन्हें गाड़ी चलाना नहीं आता होगा जिसके कारण कई दुर्घटनाएँ हो सकते हैं | ये भ्रष्ट कर्मचारी देश के विकास में एक बाधक पहाड़ बनकर खड़े हैं जिसे पार करना मुश्किल हैं परन्तु असंभव नहीं |
सपनों को अपने साँसों में रखना,
इरादों को अपने बाहों में रखना,
सफलता तुम्हे अवश्य मिलेंगे मेरे दोस्त,
बस लक्ष्य को अपने निगाहों पर रखना |
इस प्रकर देश से भ्रष्टाचार ज़रूर कम हो जायेगा और भारत देश खून-पसीना एक करके सबसे विश्व विख्यात देश बन जाएगा | आखिर कोशिश करने में
बुराई ही क्या है |
चलता रहूँगा मंजिल की ओर,
चलन में माहिर बन जाऊँगा,
मंजिल नहीं मिली तो क्या,
कम से कम अच्छा मुसाफिर तो बन जाऊँगा |
सपनों को अपने साँसों में रखना,
इरादों को अपने बाहों में रखना,
सफलता तुम्हे अवश्य मिलेंगे मेरे दोस्त,
बस लक्ष्य को अपने निगाहों पर रखना |
इस प्रकर देश से भ्रष्टाचार ज़रूर कम हो जायेगा और भारत देश खून-पसीना एक करके सबसे विश्व विख्यात देश बन जाएगा | आखिर कोशिश करने में
बुराई ही क्या है |
चलता रहूँगा मंजिल की ओर,
चलन में माहिर बन जाऊँगा,
मंजिल नहीं मिली तो क्या,
कम से कम अच्छा मुसाफिर तो बन जाऊँगा |
दर्शन बिटला
समय परिवर्तनशील है | इसी के चलते ऋषि-मुनियों की तपोभूमि राम, कृष्ण, गौतम, महावीर का यह देश भारत भी पारस्परिक फूट, वैमनस्य और काटता के कारण सैकड़ों वर्षों तक विदेशियों की पराधीनता और उनका शिकार रहा | जो भारत हम आज देख रहे है, वह मेरे सपनों का भारत नहीं है | मेरे सपनों का भारत तो वह है जो कभी सोने की चिड़िया कहलाती थी, विदेशी लोग यह व्यापर करने कि लालच में रहते थे | यहाँ वस्तुएँ विश्व भर में प्रसिद्ध थी |
मेरे सपनों का भारत तो वह होगा जिसमे गाँधीजी की कल्पना के रामराज्य की स्थापना होगी | वहाँ स्वराज्य ही नहीं सुराज्य भी होगा | मेरे भारत के गाँव - गाँव में फलता- फूलता जीवन होगा | खेतों में हरियाली और खुशहाली होगी | किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य मिलेगा | फलते-फूलते उद्योग धंदे होंगे | मिलों, कारखानों में काम करते मजदूरों के चेहरों पर प्रसन्नता होगी| देश में कोई बेरोज़गार न होगा | भूक से कोई न मरेगा | जीवन की तीन मूलभूत वस्तुएँ - रोटी कपडा और मकान सबके लिए सुलभ होगी | मेरे सपनों के भारत में सब जगह विद्यालय, महाविद्यालय और तकनीकी शिक्षा संस्था होंगे | उच्च शिक्षा के द्वार सभी के लिए खुले होंगे | शिक्षण में नवीन तकनीकी सम्बन्धी शिक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी | साथ ही भारतीय संस्कृति व सभ्यता के अध्ययन के भी पर्याप्त साधन होंगे | शहरों के साथ गावों में भी चिकित्सा की उत्तम सुविधाएँ उपलब्ध होंगी | देश में कानून का सकती से पालन होगा | चोरों, लूटेरों, अपहर्ताओं और कालाबाज़ारी करनेवालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी | देश में भ्रष्ट नेता, अधिकारी और देशद्रोही होंगे ही नहीं |
मेरे सपनों के भारत में जात-पात और धर्म के नाम पर मनुष्य नहीं बाटेंगे और मानव धर्म ही सर्वोपरि माना जाएगा | जो व्यक्ति शोषित और पीड़ित हैं, अत्यंत गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे है, उनकी दशा सुधारने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी | सबके लिए कम व्यय पर न्याय-सुलभ होगा | भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी नहीं होगी | देश के लोग ईमानदार, परिश्रमी, देशभक्त, नैतिकता जैसे गुणों से सम्पन्न होंगे | सभी लोग अपने कर्तव्यों का भली-भाती पालन कर परिश्रम व ईमानदारी के बल पर विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करेंगे| मेरे सपनों का भारत विश्व में शांति का सन्देश फैलानेवाला देश होगा | वह शक्ति का भी स्त्रोत होगा | मेरा स्वप्न है की भारत एक सुदृढ़ राष्ट्र बने | क्षत्रु जिसके नाम से ही कापें और कमज़ोर राष्ट्र जिसे अपना सम्बल समझे | आर्थिक रूप से समृद्ध, सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न, सामाजिक रूप से चरित्रवान, चेतनशील और जागरूक एक महान भारत ही मेरे सपनों का भारत होगा |
मेरे सपनों का भारत तो वह होगा जिसमे गाँधीजी की कल्पना के रामराज्य की स्थापना होगी | वहाँ स्वराज्य ही नहीं सुराज्य भी होगा | मेरे भारत के गाँव - गाँव में फलता- फूलता जीवन होगा | खेतों में हरियाली और खुशहाली होगी | किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य मिलेगा | फलते-फूलते उद्योग धंदे होंगे | मिलों, कारखानों में काम करते मजदूरों के चेहरों पर प्रसन्नता होगी| देश में कोई बेरोज़गार न होगा | भूक से कोई न मरेगा | जीवन की तीन मूलभूत वस्तुएँ - रोटी कपडा और मकान सबके लिए सुलभ होगी | मेरे सपनों के भारत में सब जगह विद्यालय, महाविद्यालय और तकनीकी शिक्षा संस्था होंगे | उच्च शिक्षा के द्वार सभी के लिए खुले होंगे | शिक्षण में नवीन तकनीकी सम्बन्धी शिक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी | साथ ही भारतीय संस्कृति व सभ्यता के अध्ययन के भी पर्याप्त साधन होंगे | शहरों के साथ गावों में भी चिकित्सा की उत्तम सुविधाएँ उपलब्ध होंगी | देश में कानून का सकती से पालन होगा | चोरों, लूटेरों, अपहर्ताओं और कालाबाज़ारी करनेवालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी | देश में भ्रष्ट नेता, अधिकारी और देशद्रोही होंगे ही नहीं |
मेरे सपनों के भारत में जात-पात और धर्म के नाम पर मनुष्य नहीं बाटेंगे और मानव धर्म ही सर्वोपरि माना जाएगा | जो व्यक्ति शोषित और पीड़ित हैं, अत्यंत गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे है, उनकी दशा सुधारने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी | सबके लिए कम व्यय पर न्याय-सुलभ होगा | भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी नहीं होगी | देश के लोग ईमानदार, परिश्रमी, देशभक्त, नैतिकता जैसे गुणों से सम्पन्न होंगे | सभी लोग अपने कर्तव्यों का भली-भाती पालन कर परिश्रम व ईमानदारी के बल पर विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करेंगे| मेरे सपनों का भारत विश्व में शांति का सन्देश फैलानेवाला देश होगा | वह शक्ति का भी स्त्रोत होगा | मेरा स्वप्न है की भारत एक सुदृढ़ राष्ट्र बने | क्षत्रु जिसके नाम से ही कापें और कमज़ोर राष्ट्र जिसे अपना सम्बल समझे | आर्थिक रूप से समृद्ध, सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न, सामाजिक रूप से चरित्रवान, चेतनशील और जागरूक एक महान भारत ही मेरे सपनों का भारत होगा |
लहर बोरिचा